Tuesday, September 3, 2019

समय

मेरे अच्छे और बुरे वक़्त के बीच जो समय होता है  वो मेरा favourite है ! न उसके जल्दी से निकल जाने की ख्वाइश होती है और न ही उसके रुके  रहने की तमन्ना ! ना आसुंओ से जाने की गुज़ारिश करनी पड़ती है और न ख़ुशी से थोड़ा और ठहरने की मिन्नत  !   
पर कम्बखत अपना तो ये "बीच का समय" भी नहीं होता , ये भी एक दिन आँख मिचौली खेलता हुआ निकल जाता है, बिना बताये और बिना अलविदा बोले.  
 - मंजिता हुड्डा  

Sunday, September 1, 2019

क्या मुश्किल है

क्या मुश्किल है, ज़िन्दगी की आसान  राहों पे चलना और Self Guilt में जीना  या ज़िन्दगी के उन् रास्तो पे जाना जहाँ लोग जाने से कतराते हैं और हर पल डरना ......

क्या मुश्किल है, दफ्तर में हर रोज़ अपने काम से खुश न होना पर फिर भी ताउम्र वही नौकरी करते जाना या फिर नौकरी छोड़ कर नयी राहें तलाशना और मन में अपनी राहों के बारे में बार बार सोचना .........

क्या मुश्किल है, बुराई को देख कर रास्ता बदल लेना या बुराई और भलाई में फर्क ही खो बैठना  ......

क्या मुश्किल है , सच जान लेना या सच का सामना करना .........

क्या मुश्किल है, सपनों से उम्मीद लगाए रखना या सपनों से दोस्ती कर बस उनके साथ खेलते रहना .........

क्या मुश्किल है, गुज़रती शामों की तन्हाई में बैठना या डरावनी रातों में जागना ..........

क्या मुश्किल है, इस जीवन के खेल में बिना हार जीत के एहसास के खेलना या इस खेल में हर हार पे रोना और हर जीत पे मुस्कुराना .......

क्या मुश्किल है,  हम सबसे अलग हैं कहके सुबह घर से निकलना और फिर भीड़ में जा मिलना और चलते जाना, या हम सबसे अलग हैं सोच कर खुद को  घर की चार दीवारों में कैद कर लेना .................

क्या मुश्किल है, खुद को पहचान लेना या खुद को पहचान देना ........

बारिश

आज पूरे दिन से धीमी धीमी बारिश हो रही है! मौसम बहुत ही सुहावना है इस बारिश की वजह से ! खिड़की से बाहर देखते रहो बस ये ही मन करता है ! मुंबई की बारिश ............. मुझे ख़ुशी है की मैं मुंबई  की बारिश ख़त्म होने से पहले इंडिया लौट आयी ! ...... 4 महीने बाद ....... यूरोप में बिताये पिछले 4  महीने  काफी लम्बे लगे मुझे ! हालांकि वक़्त काटना मुश्किल नहीं था वहाँ, क्यूंकि हर दिन इतना काम होता था और हर काम चैलेंज से भरा रहता था ! जब 10-15 दिन के बाद 2-4 दिन का ब्रेक मिलता था  तो मज़ा तो आता था पर ये ही वो दिन थे जब घर की बहुत याद आती थी ! आज घर की खिड़की के पास बैठ कर बाहर बारिश को देखना , दूर कही मस्जिद से आती आज़ान सुनना, लैपटॉप में दिल में आती बातो को लिखना, खिड़की के बहार ढलती हुयी शाम को निहारना, और इस हलकी बारिश में खिड़की से आती ठंडी ठंडी हवा के झोंको को अपने चेहरे पर महसूस करना .....और इन् सब के साथ एक कप चाय .................... ये सब यूरोप में कहाँ था !
इन् सब को में अपनी यादो में समेट लेना चाहती हूँ, ताकि जब अगली बार इंडिया से बहार जाऊं
और इंडिया को MISS करूँ तो  बस अपनी आँखे बंद करके इस पल को याद करू और जी लूँ ! क्या ऐसा मुमकिन है ?
हवा यूँ चल रही है मानो वो भी आज बहुत खुश है !
कभी कभी ज़िन्दगी में इतनी छोटी छोटी चीज़ें ही ख़ुशी दे जाती हैं और कभी कभी बड़ी से बड़ी चीज़ें भी कोई मायने नहीं रखती !!