क्या मुश्किल है, ज़िन्दगी की आसान राहों पे चलना और Self Guilt में जीना या ज़िन्दगी के उन् रास्तो पे जाना जहाँ लोग जाने से कतराते हैं और हर पल डरना ......
क्या मुश्किल है, दफ्तर में हर रोज़ अपने काम से खुश न होना पर फिर भी ताउम्र वही नौकरी करते जाना या फिर नौकरी छोड़ कर नयी राहें तलाशना और मन में अपनी राहों के बारे में बार बार सोचना .........
क्या मुश्किल है, बुराई को देख कर रास्ता बदल लेना या बुराई और भलाई में फर्क ही खो बैठना ......
क्या मुश्किल है , सच जान लेना या सच का सामना करना .........
क्या मुश्किल है, सपनों से उम्मीद लगाए रखना या सपनों से दोस्ती कर बस उनके साथ खेलते रहना .........
क्या मुश्किल है, गुज़रती शामों की तन्हाई में बैठना या डरावनी रातों में जागना ..........
क्या मुश्किल है, इस जीवन के खेल में बिना हार जीत के एहसास के खेलना या इस खेल में हर हार पे रोना और हर जीत पे मुस्कुराना .......
क्या मुश्किल है, हम सबसे अलग हैं कहके सुबह घर से निकलना और फिर भीड़ में जा मिलना और चलते जाना, या हम सबसे अलग हैं सोच कर खुद को घर की चार दीवारों में कैद कर लेना .................
क्या मुश्किल है, खुद को पहचान लेना या खुद को पहचान देना ........
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