Thursday, April 2, 2020

" कुछ बातें "

कुछ बातें दिल ही में रह जाती हैं ! ना उन्हें हम कागज़ के पन्नो पे उतार पाते हैं , और ना ज़ुबान पे ला पाते हैं, वो दिल में ही पैदा होती हैं और वहीं अपना दम तोड़ देती हैं ! उनका जीवन बिल्कुल शून्य होता है, जहाँ से शुरू.. वहीँ ख़त्म ! पर ये ही वो हैं जो हमे सबसे ज़्यादा प्यारी भी होती हैं और सबसे ज़्यादा परेशान भी करती हैं ! ये बातें अक्सर मन बना लेती हैं की आज तो हम दिल से ज़ुबान तक का सफर तय करके ही रहेंगी, और पूरे जोश में वो दिल में खलबली मचाने लगती हैं , की शायद हम उनको अपनी ज़ुबान तक पंहुचा दें । लेकिन आखिर में वो फिर एक बार थक कर बैठ जाती हैं, और हम फिर से उन्हें शून्य बना देते हैं ………  हम डरते हैं, या शायद हम इन बातों को इतना प्यार करते हैं, की इन्हें ज़ुबान पे ला कर कोई स्वाद नहीं चखाना चाहते , इस डर से की कहीं इन्हें कड़वा स्वाद नसीब हुआ तोह ? …….  हम इन्हें समझा बुझा कर फिर से दिल के एक कोने में बिठा देते हैं !
फिर एक दिन हमें दिल भारी सा लगने लगता है , और हम खुद इन बातों को बहार निकाल फेंकने का सोचते हैं , और मन बना लेते हैं की आज इनको दिल से धक्के मार कर बहार  निकाल ही देंगे !  लेकिन ना जाने फिर ऐसा क्या हो जाता है कि हम फिर से इन बातों को वहीँ उसी कोने में छोड़ कर यहाँ वहां देखने लगते हैं । शायद इनके बहार आने के परिणाम से डरने लगते हैं, या यूँ कहें कि डरते नहीं हैं, पर ये जानते हैं कि इनका "भला"  दिल के अंदर रहने में ही है ! बहार आ कर वो इस भीड़ में कहीं खो जाएँगी , लोग उनको अपने पैरों तले कुचल देंगे और उनको कोई भी नहीं समझ पायेगा ………….   ये ही तो होते आया है हमेशा !

शायद इनका जन्म इसीलिए हुआ है कि एक दिन हमारे साथ ये भी दिल के किसी कोने में दफ़न हो जाएँ !

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