Friday, April 24, 2020

ख़याल

मैंने आँखे बंद करी ..... नींद पलकों  पे बैठी थी , लेकिन अचानक फिर से वो ही ख़याल दिमाग में आ गया , जो अक्सर नींद को पलकों से बाहर धक्का मार देता था ..... मैं कितना भी नींद का हाथ पकड़ कर उसे रोकने की कौशिश करती , पर वो मेरा हाथ छुड़ा कर कई मीटर दूर जा कर बैठ जाती और मुझे टुकर टुकर देखने लगती ! और फिर हमेशा की तरह वो ख़याल मुझ पर हावी होने लगता , मानो मेरे दिलो दिमाग पर उसी का राज चलता है ....  मैं बहुत हाथ-पैर मारती,  छटपटाती , पर वो ख़याल मुझे पे दया नहीं करता , बल्कि मेरे छटपटाने पर मुस्कुराने लगता और भरपूर कौशिश करता की मेरी आँख से आँसू छलक जायें .... मैं कभी कबार बेबस हो कर आँसुओं को भी बहा देती .... लेकिन मेरे आँसू बहाने से तो उसका हौंसला और बढ़ जाता और वो घंटो तक अपना तांडव मेरे भीतर करता रहता ..... मैं लाचार सी हो कर सामने वाली दीवार को घूरने लगती...... मेरी और मेरे उस ख़याल की लड़ाई में हमेशा वो ही जीतता था !  ..... जानते हैं क्यों ? क्यूंकि वो ख़याल किसी पराये का नहीं था , बल्कि किसी अपने का था !
जब कोई पराया दर्द देता है ना तो उस दर्द से जन्में ख़याल इतने मज़बूत नहीं होते कि आपको अपने वश में ज़्यादा दिन तक रख सकें , लेकिन जब कोई अपना दर्द देता है तो उनसे पनपे ख़याल फ़ौलादी  होते हैं और उम्र भर आपको अपनी जकड़ में लिए रहते हैं ! और ऐसे ख़यालों के सामने नींद और चैन दोनों आने से कतराते हैं .... ख़ैर जैसे जैसे रात गहरी होने लगी तो उस ख़याल को भी शायद नींद आ गयी और उसने चले जाने का मन बनाया और बेचारी मेरी नींद जो पिछले कई घंटों से बाहर बैठी थी , मेरी पलकों के रास्ते मुझ तक पहुंच ही गयी ....
अब मैं रातों को ज़्यादा नहीं सोती , अक्सर सामने वाली दीवार को घूरती रहती हूँ ..... क्या पता एक दिन वो ख़याल घबराकर वापस चला जाए ......

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