Sunday, November 18, 2012

"लम्हे"

अगर रात के डर से आँखे मूँद ली,
तो ये जो अभी के लम्हे हैं वो गुज़र जाएंगे।
कल सुबह तो फिर से आ जाएगी,
 मगर हम इन लम्हों को नहीं जी पाएंगे।
यूँ गुज़र गए सालों , की हमें इसका अहसास ही ना होने पाया,
खयालो में हम एक अरसे से जा कर बैठे हैं,
इस आस में की वो फिर हमे बुलआएंगे।
ज़िन्दगी है कि मीलों की रफ़्तार से दौड़ रही है,
और हमें फिर उसी मोड पे छोड़ रही है।
मंजिल तोह अब भी साफ़ नहीं दिख रही,
पर हम चल रहे हैं की शायद उसी से जा टकरायेंगे।
यूँ रहा  अभी तक जीवन का सफ़र
की न हम चुप रह सकेंगे और न किस को बता पाएंगे।
ये कहना मुश्किल है की क्या खेल है ये
अब तो शायद आने वाले लम्हे ही ये बताएँग!!!!!!!!!

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