Thursday, May 14, 2020

Lockdown days - " रात "

हर रोज़ वही "दिन" और वही "रात" हुआ करते थे ..... सदियों से !
पर ना कभी रात को जी भर के निहारा , ना कभी दिन से बैठ के गुफ़्तगू की ! शायद "दिन" और "रात" को इस बात का बुरा लग गया ! तभी तो सबके जीवन को रोक कर वो अपने होने का एहसास करा रहे हैं आजकल ! ....... अब ये आलम है की "रातों" को जी भर के निहारती हूँ मैं, और "दिन" से घंटो बातें करती हूँ ! ना जाने कितने और लोग मेरी ही तरह दिन और रात से मुलाक़ात कर रहे होंगे इन दिनों........
अभी कल ही की बात है , मैं "रात" को देखे जा रही थी , तो मन हुआ उस से कुछ पूछने का ! ....... मैंने "रात" से पूछा की तुम इतनी काली क्यों हो , उसने कहा कि मुझे उजाले से डर लगता है , इसलिए मैं उस से दूर ही रहती हूँ , क्योंकि उजाले में सबके असली चेहरे नज़र आ जाते हैं !
मैंने उसको समझाया कि अरे पगली आजकल लोग मुखौटा लगा कर घूमते हैं , असली चेहरा कभी नहीं दिखाते ! और कुछ लोग तो रात को भी मुखौटा पहन कर ही सो जाते हैं ! पर "रात" को मेरी बात समझ में नहीं आयी , वो हल्का सा मुस्कुराई और बोली " तब तो समस्या और भी बड़ी है , अब तो मैं कभी भूल कर भी उजाले को अपने पास नहीं आने दूँगी " !

  - मंजिता हुड्डा

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