Thursday, May 7, 2020

Lockdown days - सार्थक

मेरे घर के सामने एक पेड़ है , जिसका नाम मुझे नहीं पता लेकिन जब रोज़ सुबह मैं उठ कर खिड़की के पास जा कर बैठती हूँ तो पेड़ के नीचे बिखरे हुए गुलाबी रंग के फूल मन को मोह लेते हैं ..... ऐसा लगता है कि किसी ने गुलाबी रंग की ख़ूबसूरत चादर बिछा दी हो ..... मैं हाथ में चाय का कप ले कर उसकी तरफ निहारती रहती हूँ !
जैसे दिन चढ़ता है तो सफ़ाई वाली आती है और उन फूलों को झाड़ू से समेट कर कूड़ेदान में डाल कर चली जाती है ! .....  लेकिन वो फूल तो अपना काम कर चुके ! सुबह की खिलती धुप में अपनी ख़ूबसूरती बिखेर कर वो किसी की आँखों को वो सुकून दे चुके हैं जो इन दिनों बहुत सुहाता है !
जीवन लम्बा हो ये ज़रूरी नहीं , पर जीना सार्थक हो जाए ये बहुत मायने रखता है ! ये खोज लेना की हम इस जीवन में क्यों आये हैं और इसको सार्थक कैसे बनाया जाए , इसके होने की सम्पूर्णता है !  ..... नहीं तो जी तो रहे ही हैं और एक दिन मर भी जाएंगे पर उस से पहले क्या ये खोज पाएँगे हम और बना पाएँगे अपने जीवन को सार्थक !
 - मंजिता हुड्डा

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