Monday, May 11, 2020

Lockdown days - ख़ामोशी की चींख

ख़ामोशी इतनी ख़ामोश नहीं होनी चाहिए कि उसकी चींख सुनाई देना बंद हो जाए ! ख़ामोशी में वो कशिश होनी चाहिए जो आपकी बातों में भी कभी ना दिखी हो !
पर ऐसा होता कहाँ है ..... आप जब तक ख़ामोश हो अच्छे हो ! जिस  दिन ख़ामोशी ने आवाज़ उठायी , उसे गुनेहगार साबित कर दिया जाता है , और आपको आइना दिखाया जाता है ! आइना भी ऐसा जिसमें आप ही का चेहरा सबसे भद्दा दिखता है !
आपकी चुप्पी सबको भाती है ! उस चुप्पी में दबी उदासी कभी किसी ने नहीं देखी ! आपको समझदार , सहज और ना जाने क्या क्या खिताब दिलाये इस चुप्पी ने !
पर जिस दिन ज़ुबान ने आगे कदम बढ़ाया तो वो सारे खिताब आपसे छीन लिए गए , यहाँ तक की आपको नए तमगे मिलने लगे !
और इन नए तमगों की चमक सिर्फ़ और सिर्फ़ चुभने और जलने वाली चमक थी !
ये सब देख आपकी ख़ामोशी आपसे बोल उठी .... " देखा मैंने कहा था न कि मैं ख़ामोश ही अच्छी हूँ , चीखूंगी तो वो चींख किसी को नहीं सुनाई देगी "

- मंजिता हुड्डा

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