Inside some words are echoing loud because outside these words have lost their identity. Disturbed - Seems a small word today. Emotions sounds like a word from different Era. Were we always like that or its just that we have seen each other in close proxymity now only ? ..... Were we used to be pray on someone's pain always or its just a quality which we recently developed? Were we always so silent on unethical atmosphere around us or we have just learnt to become quite about it? Were we always so tied up by system that we were never able to speak against it or its just that we have realised it just now ? Were we always used to digest so much of negativity with a hope of better tomrrow or we have just learnt it?
Are we growing to be a better being or becoming just a surviver ? Were we really so lost or we are loosing the track now?
I wish there would not have been social media. I wish we would have escaped so many news which made us feel like we are living in a world where man has become everything but not a human being. What a tragic world we are living in. We sympathise but never help, we watch tragidies everyday and assume deep somewehere in our mind that it will never happen to us. We have learnt to take news like rape, suicide, murder as our daily schedule and nothing new. More we try to know something, more it seems ugly so we have just learnt to ignore things and move on. But it gives me a lot of internal disturbance when I see that truth, honesty, hard work, love, trust, faith etc they all have just remained as words and nothing else. No meaning at all. In this age of social media, fast friends and fast food I wish we find friends who make us feel that the world is still beautiful.
I wish all those who have lost their self or life in this cruel world can come back and start from the begining.... I don't wish to learn to live in such kind of world Rather I wish the beaùty of this world come back and we can again become human beings who are there to love each other and live gracefully.
Friday, June 26, 2020
Friday, May 29, 2020
Lockdown days - ज़हरीली हवायें
हवायें गर्म हो गयी हैं , इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं हुआ इस साल , क्योंकि हवायें ज़हरीली होने लगी हैं ! गर्मी तो हम झेल लेंगे पर इस ज़हर को कैसे बर्दाश्त करेंगे , बस इसी सोच में हवाओं के गर्म हो जाने का पता ही नहीं चला !
हर ख़बर लगती है कि शायद ये सबसे बुरी ख़बर है , पर अगले ही दिन उस से भी ज़्यादा कुछ दर्दनाक सामने आ जाता है ! कहीं मासूम बच्चा अपनी माँ की गोद में दवाई ना मिल पाने की वजह से दम तोड़ रहा है , तो कहीं भूख से एक माँ मर जाती है और उसका छोटा सा बच्चा जिसने बस अभी सिर्फ चलना ही सीखा है , अपनी मरी हुयी माँ को उठाने की कौशिश कर रहा है , इस बात से अनजान की वो अब कभी नहीं उठेगी ! मज़दूर ख़ून के आँसू रो रहे हैं ! बेचारे सालों पहले भूख से भाग कर शहरों में आये थे , आज मुसीबत आयी तो शहर की हवायें इनके लिए ज़हरीली साबित हुयी ! सो सर पे जीवन का बोझ रख ये लोग वापस गांव की तरफ निकल पड़े हैं ! हज़ारो किलोमीटर तपती धूप में पैदल चल रहे हैं , इस होंसले के साथ कि अपने घर पहुँच जाएँ बस ! कुछ पहुँच रहे हैं , और कुछ रास्ते में ही दम तोड़ रहे हैं !
कुदरत कुछ ज़्यादा ही ख़फ़ा हो गयी है ! जब कोई आपदा देश या संसार पे आती है तो कुछ लोग एक दुसरे की मदद में लग जाते हैं और कुछ लोग एक दूसरे को लूटने में लग जाते हैं ! और वही इस २०२० की आपदा में भी हो रहा है !
अस्पतालों में लोग दम तोड़ रहे हैं , इलाज नहीं हो पा रहा , लोग १५०० किलोमीटर कड़ी धूप में पैदल चल रहे हैं कि बस किसी तरह अपने घर पहुँच जाएँ , बेरोज़गारी चरम सीमा पे है , उद्योगपती कँगाल होने को आये हैं , आम आदमी २-३ महीने से सैलरी ना मिलने से परेशान है , कितने ही लोग डिप्रेशन में आ कर आत्महत्या कर रहे हैं , सबका जीवन रुक सा गया है ..... आज २ महीने से सब अपने अपने घरों में बंद हैं और कुछ बेचारे अपने घर भी नहीं पहुँच पा रहे क्योंकि यातायात के साधन बंद हैं ..... पूरा देश बंद है .....कहीं जंगल जल रहे हैं , कहीं गैस लीक हो रही है , कहीं धरम के नाम पर हत्यायें हो रही हैं तो कहीं भूख़ से लोग दम तोड़ रहे हैं !
कभी बचपन में कहानियों में ही सुना था ये सब ! बदनसीबी से आँखों देखने को मिल रहा है ! कभी कभी लगता है को हॉलीवुड की कोई भयानक मूवी को जी रहे हैं ! ऐसे में राजनीती वाले अपनी ही रोटियाँ सेकने में लगे हैं ! देश की इतनी बर्बादी को भी विकास का मुखौटा पहना कर आम आदमी की आँखों में धूल झोंकने में लगे हैं !
और बेचारा आम आदमी हमेशा की तरह परेशान है और हैरान है की ये हो क्या रहा है !
- मंजिता हुड्डा
हर ख़बर लगती है कि शायद ये सबसे बुरी ख़बर है , पर अगले ही दिन उस से भी ज़्यादा कुछ दर्दनाक सामने आ जाता है ! कहीं मासूम बच्चा अपनी माँ की गोद में दवाई ना मिल पाने की वजह से दम तोड़ रहा है , तो कहीं भूख से एक माँ मर जाती है और उसका छोटा सा बच्चा जिसने बस अभी सिर्फ चलना ही सीखा है , अपनी मरी हुयी माँ को उठाने की कौशिश कर रहा है , इस बात से अनजान की वो अब कभी नहीं उठेगी ! मज़दूर ख़ून के आँसू रो रहे हैं ! बेचारे सालों पहले भूख से भाग कर शहरों में आये थे , आज मुसीबत आयी तो शहर की हवायें इनके लिए ज़हरीली साबित हुयी ! सो सर पे जीवन का बोझ रख ये लोग वापस गांव की तरफ निकल पड़े हैं ! हज़ारो किलोमीटर तपती धूप में पैदल चल रहे हैं , इस होंसले के साथ कि अपने घर पहुँच जाएँ बस ! कुछ पहुँच रहे हैं , और कुछ रास्ते में ही दम तोड़ रहे हैं !
कुदरत कुछ ज़्यादा ही ख़फ़ा हो गयी है ! जब कोई आपदा देश या संसार पे आती है तो कुछ लोग एक दुसरे की मदद में लग जाते हैं और कुछ लोग एक दूसरे को लूटने में लग जाते हैं ! और वही इस २०२० की आपदा में भी हो रहा है !
अस्पतालों में लोग दम तोड़ रहे हैं , इलाज नहीं हो पा रहा , लोग १५०० किलोमीटर कड़ी धूप में पैदल चल रहे हैं कि बस किसी तरह अपने घर पहुँच जाएँ , बेरोज़गारी चरम सीमा पे है , उद्योगपती कँगाल होने को आये हैं , आम आदमी २-३ महीने से सैलरी ना मिलने से परेशान है , कितने ही लोग डिप्रेशन में आ कर आत्महत्या कर रहे हैं , सबका जीवन रुक सा गया है ..... आज २ महीने से सब अपने अपने घरों में बंद हैं और कुछ बेचारे अपने घर भी नहीं पहुँच पा रहे क्योंकि यातायात के साधन बंद हैं ..... पूरा देश बंद है .....कहीं जंगल जल रहे हैं , कहीं गैस लीक हो रही है , कहीं धरम के नाम पर हत्यायें हो रही हैं तो कहीं भूख़ से लोग दम तोड़ रहे हैं !
कभी बचपन में कहानियों में ही सुना था ये सब ! बदनसीबी से आँखों देखने को मिल रहा है ! कभी कभी लगता है को हॉलीवुड की कोई भयानक मूवी को जी रहे हैं ! ऐसे में राजनीती वाले अपनी ही रोटियाँ सेकने में लगे हैं ! देश की इतनी बर्बादी को भी विकास का मुखौटा पहना कर आम आदमी की आँखों में धूल झोंकने में लगे हैं !
और बेचारा आम आदमी हमेशा की तरह परेशान है और हैरान है की ये हो क्या रहा है !
- मंजिता हुड्डा
Thursday, May 14, 2020
Lockdown days - " रात "
हर रोज़ वही "दिन" और वही "रात" हुआ करते थे ..... सदियों से !
पर ना कभी रात को जी भर के निहारा , ना कभी दिन से बैठ के गुफ़्तगू की ! शायद "दिन" और "रात" को इस बात का बुरा लग गया ! तभी तो सबके जीवन को रोक कर वो अपने होने का एहसास करा रहे हैं आजकल ! ....... अब ये आलम है की "रातों" को जी भर के निहारती हूँ मैं, और "दिन" से घंटो बातें करती हूँ ! ना जाने कितने और लोग मेरी ही तरह दिन और रात से मुलाक़ात कर रहे होंगे इन दिनों........
अभी कल ही की बात है , मैं "रात" को देखे जा रही थी , तो मन हुआ उस से कुछ पूछने का ! ....... मैंने "रात" से पूछा की तुम इतनी काली क्यों हो , उसने कहा कि मुझे उजाले से डर लगता है , इसलिए मैं उस से दूर ही रहती हूँ , क्योंकि उजाले में सबके असली चेहरे नज़र आ जाते हैं !
मैंने उसको समझाया कि अरे पगली आजकल लोग मुखौटा लगा कर घूमते हैं , असली चेहरा कभी नहीं दिखाते ! और कुछ लोग तो रात को भी मुखौटा पहन कर ही सो जाते हैं ! पर "रात" को मेरी बात समझ में नहीं आयी , वो हल्का सा मुस्कुराई और बोली " तब तो समस्या और भी बड़ी है , अब तो मैं कभी भूल कर भी उजाले को अपने पास नहीं आने दूँगी " !
- मंजिता हुड्डा
पर ना कभी रात को जी भर के निहारा , ना कभी दिन से बैठ के गुफ़्तगू की ! शायद "दिन" और "रात" को इस बात का बुरा लग गया ! तभी तो सबके जीवन को रोक कर वो अपने होने का एहसास करा रहे हैं आजकल ! ....... अब ये आलम है की "रातों" को जी भर के निहारती हूँ मैं, और "दिन" से घंटो बातें करती हूँ ! ना जाने कितने और लोग मेरी ही तरह दिन और रात से मुलाक़ात कर रहे होंगे इन दिनों........
अभी कल ही की बात है , मैं "रात" को देखे जा रही थी , तो मन हुआ उस से कुछ पूछने का ! ....... मैंने "रात" से पूछा की तुम इतनी काली क्यों हो , उसने कहा कि मुझे उजाले से डर लगता है , इसलिए मैं उस से दूर ही रहती हूँ , क्योंकि उजाले में सबके असली चेहरे नज़र आ जाते हैं !
मैंने उसको समझाया कि अरे पगली आजकल लोग मुखौटा लगा कर घूमते हैं , असली चेहरा कभी नहीं दिखाते ! और कुछ लोग तो रात को भी मुखौटा पहन कर ही सो जाते हैं ! पर "रात" को मेरी बात समझ में नहीं आयी , वो हल्का सा मुस्कुराई और बोली " तब तो समस्या और भी बड़ी है , अब तो मैं कभी भूल कर भी उजाले को अपने पास नहीं आने दूँगी " !
- मंजिता हुड्डा
Wednesday, May 13, 2020
Lockdown days - छत्त
जब दिल्ली की सर्दियों में, मैं अक्सर माँ और बाकी परिवार के साथ घर की छत्त पे धूप में बैठती थी , तो कभी इस बात का ख़याल नहीं आया की एक दिन यूँ बैठना एक सपना भी बन सकता है !
यहाँ मुंबई में ना तो सर्दियाँ हैं और ना छत्त और आजकल परिवार के साथ बैठना ही अपने आप में एक सपना सा लगता है ! रिश्तों की अहमियत कहाँ रह गयी है आजकल !
वो छत्त मैं बहुत मिस करती हूँ ! जब कभी मन उदास होता तो मैं छत्त पे चली जाती थी और जब कभी बहुत ख़ुशी होती तब भी मैं छत्त पर पहुँच जाती थी ! ...... छत्त पे वो बचपन में क्रिकेट खेलना भी कभी नहीं भूल पाती मैं ! और पड़ौस के घर में जो अमरुद का पेड़ था , उनका स्वाद भी याद आता है जब भी कभी मैं छत्त को याद करती हूँ ! क्योंकि वो अमरुद भी इसलिए तोड़ पाती थी कि पड़ोस की छत्त हमारी छत्त से जुडी हुयी थी ! और पड़ौसी के पेड़ से अमरुद चुराकर खाने का मज़ा ही कुछ और होता था ! उसी छत्त पे मैं घर घर भी खेला करती थी ! सब आस पास के बच्चे इक्कट्ठे हो कर किसी न किसी की छत्त पे खेला करते थे !
मैंने छत्त पे अपना बचपन गुज़ारा है और एक लगाव सा है उस छत्त से !
पर अब तो ना वो छत्त है और ना वो सर्दियाँ और न वो रिश्ते ...... छत्त और सर्दियाँ दिल्ली में रह गयी और रिश्ते बड़े हो गए !
- मंजिता हुड्डा
यहाँ मुंबई में ना तो सर्दियाँ हैं और ना छत्त और आजकल परिवार के साथ बैठना ही अपने आप में एक सपना सा लगता है ! रिश्तों की अहमियत कहाँ रह गयी है आजकल !
वो छत्त मैं बहुत मिस करती हूँ ! जब कभी मन उदास होता तो मैं छत्त पे चली जाती थी और जब कभी बहुत ख़ुशी होती तब भी मैं छत्त पर पहुँच जाती थी ! ...... छत्त पे वो बचपन में क्रिकेट खेलना भी कभी नहीं भूल पाती मैं ! और पड़ौस के घर में जो अमरुद का पेड़ था , उनका स्वाद भी याद आता है जब भी कभी मैं छत्त को याद करती हूँ ! क्योंकि वो अमरुद भी इसलिए तोड़ पाती थी कि पड़ोस की छत्त हमारी छत्त से जुडी हुयी थी ! और पड़ौसी के पेड़ से अमरुद चुराकर खाने का मज़ा ही कुछ और होता था ! उसी छत्त पे मैं घर घर भी खेला करती थी ! सब आस पास के बच्चे इक्कट्ठे हो कर किसी न किसी की छत्त पे खेला करते थे !
मैंने छत्त पे अपना बचपन गुज़ारा है और एक लगाव सा है उस छत्त से !
पर अब तो ना वो छत्त है और ना वो सर्दियाँ और न वो रिश्ते ...... छत्त और सर्दियाँ दिल्ली में रह गयी और रिश्ते बड़े हो गए !
- मंजिता हुड्डा
Monday, May 11, 2020
Lockdown days - ख़ामोशी की चींख
ख़ामोशी इतनी ख़ामोश नहीं होनी चाहिए कि उसकी चींख सुनाई देना बंद हो जाए ! ख़ामोशी में वो कशिश होनी चाहिए जो आपकी बातों में भी कभी ना दिखी हो !
पर ऐसा होता कहाँ है ..... आप जब तक ख़ामोश हो अच्छे हो ! जिस दिन ख़ामोशी ने आवाज़ उठायी , उसे गुनेहगार साबित कर दिया जाता है , और आपको आइना दिखाया जाता है ! आइना भी ऐसा जिसमें आप ही का चेहरा सबसे भद्दा दिखता है !
आपकी चुप्पी सबको भाती है ! उस चुप्पी में दबी उदासी कभी किसी ने नहीं देखी ! आपको समझदार , सहज और ना जाने क्या क्या खिताब दिलाये इस चुप्पी ने !
पर जिस दिन ज़ुबान ने आगे कदम बढ़ाया तो वो सारे खिताब आपसे छीन लिए गए , यहाँ तक की आपको नए तमगे मिलने लगे !
और इन नए तमगों की चमक सिर्फ़ और सिर्फ़ चुभने और जलने वाली चमक थी !
ये सब देख आपकी ख़ामोशी आपसे बोल उठी .... " देखा मैंने कहा था न कि मैं ख़ामोश ही अच्छी हूँ , चीखूंगी तो वो चींख किसी को नहीं सुनाई देगी "
- मंजिता हुड्डा
पर ऐसा होता कहाँ है ..... आप जब तक ख़ामोश हो अच्छे हो ! जिस दिन ख़ामोशी ने आवाज़ उठायी , उसे गुनेहगार साबित कर दिया जाता है , और आपको आइना दिखाया जाता है ! आइना भी ऐसा जिसमें आप ही का चेहरा सबसे भद्दा दिखता है !
आपकी चुप्पी सबको भाती है ! उस चुप्पी में दबी उदासी कभी किसी ने नहीं देखी ! आपको समझदार , सहज और ना जाने क्या क्या खिताब दिलाये इस चुप्पी ने !
पर जिस दिन ज़ुबान ने आगे कदम बढ़ाया तो वो सारे खिताब आपसे छीन लिए गए , यहाँ तक की आपको नए तमगे मिलने लगे !
और इन नए तमगों की चमक सिर्फ़ और सिर्फ़ चुभने और जलने वाली चमक थी !
ये सब देख आपकी ख़ामोशी आपसे बोल उठी .... " देखा मैंने कहा था न कि मैं ख़ामोश ही अच्छी हूँ , चीखूंगी तो वो चींख किसी को नहीं सुनाई देगी "
- मंजिता हुड्डा
Lockdown days -" खिड़की "
जीवन में हर चीज़ का महत्त्व एक दिन समझ आ ही जाता है !
कभी सोचा नहीं था, कि इसका महत्त्व तब समझ आएगा जब एक दिन हम खुद को घरों में कैद पाएँगे..... जी हाँ मैं मामूली सी दिखने वाली "खिड़की" की बात कर रही हूँ !
रोज़ की भागदौड़ में , मैंने उसे यूँ अनदेखा कर रखा था , जैसे घर में उसके होने या ना होने से कोई खास फ़र्क नहीं पड़ता ! ज़िन्दगी चले जा रही थी, या यूँ कहें की कटे जा रही थी और बेचारी खिड़की इसी आस में थी कि कोई तो उसके पास कुछ वक़्त गुज़ारे .... कोई तो चाय का कप हाथ में ले कर उसके सामने बैठे , और उसे उसके होने का अहसास कराये ! पर कहाँ .... कितने काम होते हैं ! अब वो बात कहाँ रह गयी थी कि चैन से इंसान एक जगह बैठ सके , और वो भी अकेले ..... ना जी ना .... और थोड़ा बहुत वक़्त निकल भी आये , तो व्हट्स अप्प , फेसबुक ... ये सब कब चैक करें ? ये " खिड़की " कहाँ समझती है ये .... वो तो बस आस लगाए बैठी रहती !
तभी अचानक कुछ दिन पहले कुछ ऐसा हो गया की 24 घंटे घर में ही रहना है ! लोगों ने इसे " Lockdown" का नाम दिया ! अब इसकी तो आदत ही नहीं थी ! चलो, जैसे तैसे दिन गुज़रने लगे ! अब चीज़ें बदलने लगी थी ! एक दिन श्याम को मैं चाय ले कर किचन से निकली और बैडरूम की तरफ जाने लगी , तभी ड्राइंग रूम की खिड़की ने मुझे आवाज़ लगाई !
आवाज़ तो वो कई सालों से लगा रही थी , पर मुझे कभी सुनाई ही नहीं दी ! आज सुनाई दी तो में चल दी उसकी तरफ , सोचा आज यहीं बैठ कर चाय पी जाए ! चाय की चुस्की ली और नज़र उठा कर बाहर देखा, और फिर देखती रही .....
जब तक मेरी चाय ख़त्म हुई मुझे समझ आ चुका था कि इतने सालों से मैं क्या मिस कर रही थी ! चाय ख़त्म होने के बाद भी मैं बहुत देर तक वहाँ बैठी रही ! बीच बीच में एक नज़र खिड़की के किनारों पे भी चली जाती !
अब मैं हर रोज़ हाथ में चाय का कप ले कर खिड़की पर बैठ जाती हूँ , और बाहर देखती रहती हूँ !
इतना सुकून भी कहीं हो सकता है , कभी सोचा ही नहीं था !
- मंजिता हुड्डा
कभी सोचा नहीं था, कि इसका महत्त्व तब समझ आएगा जब एक दिन हम खुद को घरों में कैद पाएँगे..... जी हाँ मैं मामूली सी दिखने वाली "खिड़की" की बात कर रही हूँ !
रोज़ की भागदौड़ में , मैंने उसे यूँ अनदेखा कर रखा था , जैसे घर में उसके होने या ना होने से कोई खास फ़र्क नहीं पड़ता ! ज़िन्दगी चले जा रही थी, या यूँ कहें की कटे जा रही थी और बेचारी खिड़की इसी आस में थी कि कोई तो उसके पास कुछ वक़्त गुज़ारे .... कोई तो चाय का कप हाथ में ले कर उसके सामने बैठे , और उसे उसके होने का अहसास कराये ! पर कहाँ .... कितने काम होते हैं ! अब वो बात कहाँ रह गयी थी कि चैन से इंसान एक जगह बैठ सके , और वो भी अकेले ..... ना जी ना .... और थोड़ा बहुत वक़्त निकल भी आये , तो व्हट्स अप्प , फेसबुक ... ये सब कब चैक करें ? ये " खिड़की " कहाँ समझती है ये .... वो तो बस आस लगाए बैठी रहती !
तभी अचानक कुछ दिन पहले कुछ ऐसा हो गया की 24 घंटे घर में ही रहना है ! लोगों ने इसे " Lockdown" का नाम दिया ! अब इसकी तो आदत ही नहीं थी ! चलो, जैसे तैसे दिन गुज़रने लगे ! अब चीज़ें बदलने लगी थी ! एक दिन श्याम को मैं चाय ले कर किचन से निकली और बैडरूम की तरफ जाने लगी , तभी ड्राइंग रूम की खिड़की ने मुझे आवाज़ लगाई !
आवाज़ तो वो कई सालों से लगा रही थी , पर मुझे कभी सुनाई ही नहीं दी ! आज सुनाई दी तो में चल दी उसकी तरफ , सोचा आज यहीं बैठ कर चाय पी जाए ! चाय की चुस्की ली और नज़र उठा कर बाहर देखा, और फिर देखती रही .....
जब तक मेरी चाय ख़त्म हुई मुझे समझ आ चुका था कि इतने सालों से मैं क्या मिस कर रही थी ! चाय ख़त्म होने के बाद भी मैं बहुत देर तक वहाँ बैठी रही ! बीच बीच में एक नज़र खिड़की के किनारों पे भी चली जाती !
अब मैं हर रोज़ हाथ में चाय का कप ले कर खिड़की पर बैठ जाती हूँ , और बाहर देखती रहती हूँ !
इतना सुकून भी कहीं हो सकता है , कभी सोचा ही नहीं था !
- मंजिता हुड्डा
Thursday, May 7, 2020
Lockdown days - सार्थक
मेरे घर के सामने एक पेड़ है , जिसका नाम मुझे नहीं पता लेकिन जब रोज़ सुबह मैं उठ कर खिड़की के पास जा कर बैठती हूँ तो पेड़ के नीचे बिखरे हुए गुलाबी रंग के फूल मन को मोह लेते हैं ..... ऐसा लगता है कि किसी ने गुलाबी रंग की ख़ूबसूरत चादर बिछा दी हो ..... मैं हाथ में चाय का कप ले कर उसकी तरफ निहारती रहती हूँ !
जैसे दिन चढ़ता है तो सफ़ाई वाली आती है और उन फूलों को झाड़ू से समेट कर कूड़ेदान में डाल कर चली जाती है ! ..... लेकिन वो फूल तो अपना काम कर चुके ! सुबह की खिलती धुप में अपनी ख़ूबसूरती बिखेर कर वो किसी की आँखों को वो सुकून दे चुके हैं जो इन दिनों बहुत सुहाता है !
जीवन लम्बा हो ये ज़रूरी नहीं , पर जीना सार्थक हो जाए ये बहुत मायने रखता है ! ये खोज लेना की हम इस जीवन में क्यों आये हैं और इसको सार्थक कैसे बनाया जाए , इसके होने की सम्पूर्णता है ! ..... नहीं तो जी तो रहे ही हैं और एक दिन मर भी जाएंगे पर उस से पहले क्या ये खोज पाएँगे हम और बना पाएँगे अपने जीवन को सार्थक !
- मंजिता हुड्डा
जैसे दिन चढ़ता है तो सफ़ाई वाली आती है और उन फूलों को झाड़ू से समेट कर कूड़ेदान में डाल कर चली जाती है ! ..... लेकिन वो फूल तो अपना काम कर चुके ! सुबह की खिलती धुप में अपनी ख़ूबसूरती बिखेर कर वो किसी की आँखों को वो सुकून दे चुके हैं जो इन दिनों बहुत सुहाता है !
जीवन लम्बा हो ये ज़रूरी नहीं , पर जीना सार्थक हो जाए ये बहुत मायने रखता है ! ये खोज लेना की हम इस जीवन में क्यों आये हैं और इसको सार्थक कैसे बनाया जाए , इसके होने की सम्पूर्णता है ! ..... नहीं तो जी तो रहे ही हैं और एक दिन मर भी जाएंगे पर उस से पहले क्या ये खोज पाएँगे हम और बना पाएँगे अपने जीवन को सार्थक !
- मंजिता हुड्डा
Tuesday, May 5, 2020
Lockdown days
Today is 5th May, 2020.
It's been 48 days . We are living a life called "Lockdown days". Everything is closed. Shops, Malls, schools, offices, park, Gym and even the most sensitive place of our religious sentimemts called temples, mosques and churches. In short the place of worship are also facing this unexpected phase called " Lockdown"
I never thought, Infact No one ever thought that A day like this will ever come, Hence No one was prepared for this , Not mentally, Not financially, not in any sense.
COVID -19 - A virus that is destryoing human life worldwide is still at its peak and we are just praying everyday that it goes away. But who knows when will it say goodbye to us.
In my entire life I have never seen such a disaster. Lakhs of people are dying worldwide becaus of this and No country is able to find a vaccine or a solution apart from social distancing.
Lockdown has showed a diffrent phase of life which everyone was ignoring for centuries.
Unfortunate thing in our country Bharat is that Many lives are starving because they are stuck and have nothing to eat.... No work, No money, No movement.... Though many people are helping them out but still its a dark phase and everyone is fighting to survive...
Some people say that COVID 19 is a revange of Nature against Human as we are destroying it for many years for our benefits. Some say that it is going to be cleansing of world from Human lives as there are too many people. Nobody knows the actual fact.
I just hope that we learn from it and become a better person after lockdown days.
Anyway, I can not describe everything about this lockdown in a small blog as there are too many things to talk about, but all I want to say is that let's pray that this phase passes away soon and we are back to our Normal life and lets start behaving like a Human in the coming days..........
It's been 48 days . We are living a life called "Lockdown days". Everything is closed. Shops, Malls, schools, offices, park, Gym and even the most sensitive place of our religious sentimemts called temples, mosques and churches. In short the place of worship are also facing this unexpected phase called " Lockdown"
I never thought, Infact No one ever thought that A day like this will ever come, Hence No one was prepared for this , Not mentally, Not financially, not in any sense.
COVID -19 - A virus that is destryoing human life worldwide is still at its peak and we are just praying everyday that it goes away. But who knows when will it say goodbye to us.
In my entire life I have never seen such a disaster. Lakhs of people are dying worldwide becaus of this and No country is able to find a vaccine or a solution apart from social distancing.
Lockdown has showed a diffrent phase of life which everyone was ignoring for centuries.
Unfortunate thing in our country Bharat is that Many lives are starving because they are stuck and have nothing to eat.... No work, No money, No movement.... Though many people are helping them out but still its a dark phase and everyone is fighting to survive...
Some people say that COVID 19 is a revange of Nature against Human as we are destroying it for many years for our benefits. Some say that it is going to be cleansing of world from Human lives as there are too many people. Nobody knows the actual fact.
I just hope that we learn from it and become a better person after lockdown days.
Anyway, I can not describe everything about this lockdown in a small blog as there are too many things to talk about, but all I want to say is that let's pray that this phase passes away soon and we are back to our Normal life and lets start behaving like a Human in the coming days..........
Friday, April 24, 2020
ख़याल
मैंने आँखे बंद करी ..... नींद पलकों पे बैठी थी , लेकिन अचानक फिर से वो ही ख़याल दिमाग में आ गया , जो अक्सर नींद को पलकों से बाहर धक्का मार देता था ..... मैं कितना भी नींद का हाथ पकड़ कर उसे रोकने की कौशिश करती , पर वो मेरा हाथ छुड़ा कर कई मीटर दूर जा कर बैठ जाती और मुझे टुकर टुकर देखने लगती ! और फिर हमेशा की तरह वो ख़याल मुझ पर हावी होने लगता , मानो मेरे दिलो दिमाग पर उसी का राज चलता है .... मैं बहुत हाथ-पैर मारती, छटपटाती , पर वो ख़याल मुझे पे दया नहीं करता , बल्कि मेरे छटपटाने पर मुस्कुराने लगता और भरपूर कौशिश करता की मेरी आँख से आँसू छलक जायें .... मैं कभी कबार बेबस हो कर आँसुओं को भी बहा देती .... लेकिन मेरे आँसू बहाने से तो उसका हौंसला और बढ़ जाता और वो घंटो तक अपना तांडव मेरे भीतर करता रहता ..... मैं लाचार सी हो कर सामने वाली दीवार को घूरने लगती...... मेरी और मेरे उस ख़याल की लड़ाई में हमेशा वो ही जीतता था ! ..... जानते हैं क्यों ? क्यूंकि वो ख़याल किसी पराये का नहीं था , बल्कि किसी अपने का था !
जब कोई पराया दर्द देता है ना तो उस दर्द से जन्में ख़याल इतने मज़बूत नहीं होते कि आपको अपने वश में ज़्यादा दिन तक रख सकें , लेकिन जब कोई अपना दर्द देता है तो उनसे पनपे ख़याल फ़ौलादी होते हैं और उम्र भर आपको अपनी जकड़ में लिए रहते हैं ! और ऐसे ख़यालों के सामने नींद और चैन दोनों आने से कतराते हैं .... ख़ैर जैसे जैसे रात गहरी होने लगी तो उस ख़याल को भी शायद नींद आ गयी और उसने चले जाने का मन बनाया और बेचारी मेरी नींद जो पिछले कई घंटों से बाहर बैठी थी , मेरी पलकों के रास्ते मुझ तक पहुंच ही गयी ....
अब मैं रातों को ज़्यादा नहीं सोती , अक्सर सामने वाली दीवार को घूरती रहती हूँ ..... क्या पता एक दिन वो ख़याल घबराकर वापस चला जाए ......
Thursday, April 2, 2020
" कुछ बातें "
कुछ बातें दिल ही में रह जाती हैं ! ना उन्हें हम कागज़ के पन्नो पे उतार पाते हैं , और ना ज़ुबान पे ला पाते हैं, वो दिल में ही पैदा होती हैं और वहीं अपना दम तोड़ देती हैं ! उनका जीवन बिल्कुल शून्य होता है, जहाँ से शुरू.. वहीँ ख़त्म ! पर ये ही वो हैं जो हमे सबसे ज़्यादा प्यारी भी होती हैं और सबसे ज़्यादा परेशान भी करती हैं ! ये बातें अक्सर मन बना लेती हैं की आज तो हम दिल से ज़ुबान तक का सफर तय करके ही रहेंगी, और पूरे जोश में वो दिल में खलबली मचाने लगती हैं , की शायद हम उनको अपनी ज़ुबान तक पंहुचा दें । लेकिन आखिर में वो फिर एक बार थक कर बैठ जाती हैं, और हम फिर से उन्हें शून्य बना देते हैं ……… हम डरते हैं, या शायद हम इन बातों को इतना प्यार करते हैं, की इन्हें ज़ुबान पे ला कर कोई स्वाद नहीं चखाना चाहते , इस डर से की कहीं इन्हें कड़वा स्वाद नसीब हुआ तोह ? ……. हम इन्हें समझा बुझा कर फिर से दिल के एक कोने में बिठा देते हैं !
फिर एक दिन हमें दिल भारी सा लगने लगता है , और हम खुद इन बातों को बहार निकाल फेंकने का सोचते हैं , और मन बना लेते हैं की आज इनको दिल से धक्के मार कर बहार निकाल ही देंगे ! लेकिन ना जाने फिर ऐसा क्या हो जाता है कि हम फिर से इन बातों को वहीँ उसी कोने में छोड़ कर यहाँ वहां देखने लगते हैं । शायद इनके बहार आने के परिणाम से डरने लगते हैं, या यूँ कहें कि डरते नहीं हैं, पर ये जानते हैं कि इनका "भला" दिल के अंदर रहने में ही है ! बहार आ कर वो इस भीड़ में कहीं खो जाएँगी , लोग उनको अपने पैरों तले कुचल देंगे और उनको कोई भी नहीं समझ पायेगा …………. ये ही तो होते आया है हमेशा !
Monday, February 10, 2020
lost
What do I write..... I am lost.... I am lost as who I am or who I was and who I am going to be. My Image as "I" is broken and shattered. I am trying to gather it and stand again to become who I am.
I suffer because of my emotional attitude, I suffer because I made my own world and now I find someone destroying this world and I am unable to do anything. I suffer because perhaps I made some wrong decisions in life. I suffer because of being " Who I am"
I lost my self and and I am fighting to get it back without disturbing things around me and that is disturbing me a lot.
I want courage to stand again the way I used to be always.
Just thinking of getting out of this all.
Dear God give me the power to stand out, wisdom to understand and courage to deal with " Who I am"
21:04 pm @ Mumbai
I suffer because of my emotional attitude, I suffer because I made my own world and now I find someone destroying this world and I am unable to do anything. I suffer because perhaps I made some wrong decisions in life. I suffer because of being " Who I am"
I lost my self and and I am fighting to get it back without disturbing things around me and that is disturbing me a lot.
I want courage to stand again the way I used to be always.
Just thinking of getting out of this all.
Dear God give me the power to stand out, wisdom to understand and courage to deal with " Who I am"
21:04 pm @ Mumbai
Subscribe to:
Posts (Atom)